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मधुमेह के लक्षण और उपाय। टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह के लक्षण

मधुमेह या डायबिटीज़ क्या है?

मधुमेह (diabetes mellitus) बीमारियों का एक समूह है, जिसमें आपके खून में शर्करा (Sugar) या ग्लूकोज (Glucose) की मात्रा बढ़ने लगती है।
एक सामान्य व्यक्ति के खून में शुगर की मात्रा खाली पेट 70 से 110 mg/dl होती है, और खाना खाने के बाद 70 से 140 mg/dl के बीच होती है।

📒Table of content
मधुमेह के लक्षण । टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह के लक्षण
Diabetes

डायबिटीज़ क्यों होती है?

जब हम भोजन करते हैं, तब हमारा शरीर भोजन को ग्लूकोस में बदलता है, जो कि हमारे शरीर को ऊर्जा (energy) प्रदान करता है। ग्लूकोस हमारी मांसपेशियों और ऊतकों को बनाने वाली कोशिकाओं (cells) के लिए ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमारे मस्तिष्क के ईंधन का भी मुख्य स्रोत है।

ग्लूकोज को हमारे शरीर की हर एक कोशिका (Cell) तक पहुंचाने का काम इंसुलिन करता है, जोकि पैंक्रियास के बीटा सेल में बनता है। इंसुलिन (insulin) एक कुंजी की तरह है, जो शरीर की कोशिकाओं के द्वार खोलता है। जिससे कि ग्लूकोज या शुगर हमारे रक्त से कोशिकाओं में जा सके।

लेकिन अगर किसी व्यक्ति को मधुमेह है, तो उसका शरीर या तो इंसुलिन बनाना बंद कर देता है, या इंसुलिन शरीर में अच्छे से काम नहीं कर पाता जैसे कि इसे करना चाहिए, जिसके परिणाम स्वरूप ग्लूकोज सामान्य रूप से कोशिकाओं में नहीं जा पाता, और इसलिए रक्त शर्करा (blood sugar) का स्तर बहुत अधिक हो जाता है।

बहुत अधिक रक्त शर्करा (blood sugar) गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। भारत में लगभग 7 करोड़ से ज्यादा लोग मधुमेह (diabetes mellitus) से पीड़ित हैं।

डायबिटीज़ (मधुमेह) कितने प्रकार की होती है?

डायबिटीज़ मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है:-

1. टाइप 1 डायबिटीज़ :- टाइप 1 में आपका इम्यून सिस्टम आपके अग्न्याशय (Pancreas) में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं (Beta cells) को नष्ट कर देती है, जिसके कारण शरीर में अग्न्याशय (Pancreas) के द्वारा इंसुलिन का पूर्ण निर्माण नहीं हो पाता और मरीज को इंसुलिन लेना पड़ता है। टाइप 1  आमतौर पर बच्चों और युवा लोगों में पाई जाती है। टाइप 1  लगभग 10% मरीजों में पाई जाती है। 

2. टाइप 2 डायबिटीज़ :- टाइप 2  अधिकतर 40 वर्ष या उससे अधिक की आयु के लोगों में होती है, पर यह जल्दी भी हो सकती है। टाइप 2  में शरीर के अंदर इंसुलिन का उत्पादन तो होता है, लेकिन इंसुलिन की मात्रा पर्याप्त नहीं होती, जिससे कि शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल कर सके। जिसके परिणाम स्वरूप खून में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है। लगभग 80% मरीज टाइप 2 मधुमेह के होते हैं और इसका एक कारण मोटापा भी होता है।

3. गर्भावस्था में होने वाली डायबिटीज़ :- गर्भावस्था में होने वाली डायबिटीज़ को Gestational diabetes कहते है। इस प्रकार की डायबिटीज़ लगभग 4% महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान होती है। यदि गर्भावस्था के समय रक्त में शुगर की मात्रा अधिक हो तो गर्भ में शिशु का बजन अधिक बढ जाता है जिसके कारण प्रसव में कठिनाई हो सकती है और मां और बच्चे को प्रसव के समय नुकसान पहुंच सकता है। वैसे तो यह डायबिटीज़ प्रसव के बाद अपने आप ठीक हो जाती हैं, लेकिन आगे चलकर उस महिला में टाइप 2 मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है।

डायबिटीज़ (मधुमेह) के लक्षण क्या होते हैं?

मधुमेह के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि आपका रक्त शर्करा कितना बढ़ा है। कुछ लोग, विशेष रूप से जो कि प्रीडायबिटीज़ या टाइप 2 वाले हैं, शुरू में लक्षणों का अनुभव नहीं कर सकते। टाइप 1 मधुमेह में, लक्षण जल्दी से आते हैं और अधिक गंभीर होते हैं।

टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज़ के कुछ लक्षण निम्न हैं :-

• अधिक प्यास लगना
• बार - बार पेशाब आना
• अत्यधिक भूख लगना
• जल्दी थकावट होना
• असामान्य रूप से वजन का घटना
• चिड़चिड़ापन होना
• चक्कर आना
• जख्म का जल्दी ठीक ना होना
• हाथ पैरों में झनझनाहट या सुन्न होना
• आंखों से धुंधला दिखाई देना या रोशनी कम होना 

Gestational diabetes गर्भावस्था में होने वाली मधुमेह में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई देते, कुछ मरीजों को सिर्फ अधिक प्यास अनुभव होता है।


डायबिटीज़ के कारण होने वाले नुकसान :-


टाइप 1 और टाइप 2 के मरीजों में दिल की बीमारी, स्ट्रोक, दृष्टि हानि (diabetic retinopathy), रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान (diabetic neuropathy), और गुर्दे की क्षति (diabetic nephropathy) जैसी जटिलताओं का खतरा होता है। हालांकि, लगातार निगरानी, ​​इंसुलिन और आहार के माध्यम से सामान्य रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखते हुए जटिलताओं को कम किया जा सकता है। 
गर्भावस्था में होने वाली डायबिटीज़ (Gestational diabetes) के रोगी गर्भावस्था के बाद ठीक हो जाते हैं लेकिन, उन्हें बाद में जीवन में टाइप 2 होने का खतरा होता है।

• Diabetic retinopathy :- मधुमेह के कारण आंखों की नसें कमजोर हो जाती हैं जिसके परिणाम स्वरूप दृष्टि कमजोर हो जाती है और अंधापन होने का भी खतरा बना रहता है। इसीलिए डायबिटीज़ के मरीज को साल में एक बार अपनी आँखों की जांच करवानी चाहिए।

• Diabetic nephropathy :- डायबिटीज़ के कारण किडनी में खून की नसों को नुकसान पहुंच सकता है जिसके कारण किडनी की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है जिसे हम diabetic nephropathy कहते हैं। आम लोगों की तुलना में डायबिटीज़ के मरीजों में किडनी की बीमारी होने संभावना कहीं अधिक होते हैं, और इसके शुरुआती लक्षणों का पता नहीं चल पाता इसीलिए डायबिटीज के मरीज को साल में एक बार किडनी की जांच करवानी चाहिए जिससे की किडनी को खराब होने से बचाया जा सके।

• Diabetic neuropathy :- जब रक्त में शुगर की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है तब आपके शरीर में तंत्रिकाओं की कोशिकाओं में सूजन होने लगती है, और समय के साथ - साथ तंत्रिकाओं की संकेत भेजने की क्षमता कम होने लगती है, जिसके चलते पैरों में सुन्नपन, जलन और 
संक्रमित घाव जैसी समस्या पैदा होने लगती है।
ऐसे मरीजों के घाव जल्दी ठीक नहीं होते और कई बार हालात इतने गंभीर हो जाते हैं कि मरीज को अपनी टांग तक कटबानी पड़ सकती है।

• Heart disease and Stroke :- डायबिटीज़ के मरीजों में उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण हार्ट अटैक और लकवा मारने का खतरा बढ़ जाता है।

किन लोगों में डायबिटीज़ की संभावना अधिक होती है ?

ऐसे कई कारक हैं जिसकी वजह से डायबिटीज़ होने की संभावना बढ़ जाती है, जिसमें से कुछ कारक ऐसे हैं, जिनमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ कारक ऐसे भी हैं जिनमें परिवर्तन लाया जा सकता है, और इससे बचा जा सकता है।

1. Family History या परिवारिक का इतिहास :- यदि आपके परिवार में माता पिता या भाई बहन किसी को डायबिटीज़ है तो आपको होने की संभावना बढ़ जाती है।

2. Obesity या मोटापा :- यदि आपका वजन जरूरत से ज्यादा है तो ऐसे में आपको टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना बढ़ जाती है, टाइप 2 डायबिटीज में लगभग 75% मरीजों का वज़न अधिक पाया जाता है।

3. Sex या लिंग :- यदि लिंग के आधार पर देखा जाए तो 30 वर्ष की आयु के बाद महिलाओं में पुरुष के मुकाबले डायबिटीज की संभावना बढ़ जाती है।

4. Stress या तनाव :- अधिक तनाव, गलत खानपान और शारीरिक रूप से कम परिश्रम भी टाइप 2 डायबिटीज का बड़ा कारण है।

डायबिटीज की जांच कैसे होती है?

डायबिटीज की जांच तीन प्रकार से की जाती है।

1. फास्टिंग प्लास्मा ग्लूकोज टेस्ट (FPGT) :- इस जांच को खाली पेट किया जाता है, यदि आपके खून में ग्लूकोज की मात्रा 126mg/dl से ज्यादा हो तो इसको डायबिटीज माना जायेगा।

2. ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (OGTT) :- इस जांच को करने से पहले फास्टिंग प्लास्मा ग्लूकोज टेस्ट खाली पेट किया जाता है और फिर मरीज को 75 ग्राम ग्लूकोज पिलाया जाता है और 2 घंटे बाद दोबारा खून का नमूना लिया जाता है जिसमे अगर खून में ग्लूकोज की मात्रा 200mg/dl से अधिक हो तो डायबिटीज माना जायेगा।

3. HbA1c test :- यह जांच किसी भी समय की जा सकती है, इस जांच के दौरान खाली पेट रहना जरूरी नहीं है। इस जांच से पिछले तीन महीने के दौरान रही शुगर की मात्रा का पता लगाया जा सकता है। HbA1c की नॉर्मल वैल्यू 5.6% से 6.4% होती है।

डायबिटीज से कैसे बचा जा सकता है?

• सही समय पर भोजन करें, अंकुरित अनाज और हरी सब्जियों का सेवन करें।
• रोजाना 30 से 60 मिनट व्यायाम करें।
• अपने वजन को नियंत्रित करें।
• धूम्रपान से बचें।
• ज़्यादा घी तेल वाला भोजन ना करें।
• जंक फूड का सेवन ना करें।
• तनाव मुक्त और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
• सही समय पर जांच करवाएं।

डायबिटीज का इलाज क्या है?

डायबिटीज को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसको सही खानपान, नियमित व्यायाम, और दवाइयों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।

• टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीजों में सही खानपान, रक्त शर्करा की नियमित निगरानी, और सामान्य रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने के लिए इंसुलिन का उपयोग करना पड़ता है।
• टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों को सही खानपान, रक्त शर्करा की नियमित निगरानी, व्यायाम, और ओरल हाइपोग्लाइसेमिक दवाइयों की सलाह दी जाती है।

डायबिटीज में क्या नहीं खाना चाहिए?

• समोसा, पराठा, पूड़ी और नमकीन बिस्कुट नहीं खाना चाहिए।
• कोल्ड ड्रिंक, गन्ने का जूस, डिब्बाबंद जूस शराब आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
• डायबिटीज के मरीजों को ज़्यादा मीठे फल जैसे कि आम, केला, चीकू, शरीफा, अंगूर, लीची और खजूर यह सब फल नहीं खाने चाहिए।
• काजू, पिस्ता, मूंगफली, किशमिश जैसे सूखे मेवे का उपयोग नहीं करना चाहिए।
• आलू, अरबी, शकरकंदी, शलजम और चुकंदर जैसी जड़ कंद वाली सब्जियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
• मलाई वाला दूध, देसी घी, मक्खन, वनस्पति घी, अंडे का पीला भाग और लाल मांस का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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